April 29, 2024

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santoshi mata ki katha

santoshi mata ki katha  शुक्रवार के दिन माँ संतोषी माता का व्रत-पूजन किया जाता है। इस पूजा के दौरान माता की आरती, पूजन तथा अंत में माता की कथा सुनी जाती है।  शुक्रवार के दिन की जाने वाली संतोषी माता व्रत कथा इस प्रकार है

santoshi mata ki katha

एक बुढ़िया थी, उसके आठ  बेटे थे। सात कमाने वाले थे जबकि एक निक्कमा था। बुढ़िया सातों बेटों की रसोई बनाती, भोजन कराती और उनसे जो कुछ जूठन बचती वह आठवै बेटे को दे देती।

एक  दिन आठवै बेटे अपनी  पत्नी से बोला: देखो मेरी माँ को मुझ पर कितना प्यार करती है।
वह बोली क्यों नहीं, सबका झूठा तो  तुमको खिलाती है।
वह बोला: ऐसा नहीं हो सकता है। मैं जब तक आंखों से नहीं  देख लूं तब तक  नहीं मान  सकता।
उसकी पत्नी हंस कर बोली: देख लोगे तब तो मान लोगे

थोड़े दिन बाद त्यौहार आया। घर में सात प्रकार के पकवाने और चूरमे का लड्डू बने। वह पता लगाने के लिए सिर दुखने का बहाना कर पतला वस्त्र  सिर पर ओढ़े रसोई घर में सो गया। वह कपड़े में से सब देखता रहा। सातों भाई भोजन करने आए। उसने देखा, माँ ने उनके लिए सुन्दर आसन बिछा अलग – अलग  प्रकार का भोजन  कराया और आग्रह करके उन्हें जिमाया  । सुता सुता  देखता रहा।

santoshi mata ki katha

सातों भोजन करके उठे तब माँ ने उन सभी की झूठी थालियों में से लड्डुओं के टुकड़े उठाकर उसका एक लड्डू बनाया।
जूठन साफ कर बुढ़ि माँ ने उसे पुकारा  बेटा, सातों  भाइयो ने  भोजन कर लिया  अब तू ही बाकी रहा है, उठ तू कब खाएगा।
वह कहने लगा की माँ मुझे भोजन नहीं करना, मैं अब विदेश जा रहा हूँ।
माँ ने कहा कल जाता हो तो आज चला जा।
वह बोलाहां की अभी ही जा रहा हूँ। यह कह कर वह घर से निकल गया।

santoshi mata ki katha in hindi

आठवे बेटे का परदेश जाना

उसे जाते समय पत्नी की याद आ गई। वह गौशाला में कण्डे थपड़ी  थाप रही थी।
वहाँ जाकर बोला  हम जावे विदेश आवेंगे कुछ काल, तुम रहियो संतोष से धर्म आपनो पाल।
वह बोली जाओ पिया आनन्द से हमारो सोच हटाय, राम भरोसे हम रहें ईश्वर तुम्हें सहाय। दो निशानी आपन देख धरूं में धीर, सुधि मति हमारी बिसारियो रखियो मन गम्भीर। वह  चला  गया

वह बोला मेरे पास तो और कुछ नहीं, एक अंगूठी है सो तू रखे ले और अपनी कुछ निशानी मुझे दे दे ।
वह बोली: मेरे पास क्या है, यह गोबर भरा हाथ है। यह कह कर उसकी पीठ पर गोबर के हाथ की थाप मार दी। वह चल दिया, चलते-चलते विदेश पहुंचा गया ।

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परदेश मे नौकरी:

परदेशे में एक साहूकार की दुकान थी। वह वहाँ जाकर कहने लगा भाई मुझे भी नौकरी पर रख लो।
साहूकार को एक नौकर की जरूरत थी, बोला रह जा।
लड़के ने पूछा तनखा क्या दोगे।
साहूकार ने कहा काम देख कर दाम मिलेंगे। साहूकार की नौकरी मिली, वह सुबह 7 बजे से 10 बजे तक नौकरी करने  लगा। कुछ दिनों में दुकान का सारा लेन-देन, हिसाब-किताब, ग्राहकों को माल बेचना सारा काम करने लगा। साहूकार के सात-आठ नौकर थे, वे सब चक्कर खाने लगे, यह तो बहुत होशियार बन गया।

सेठ ने भी काम देखा और तीन महीने में ही उसे आधे मुनाफे का हिस्सेदार बना लिया। वह कुछ वर्ष में ही जाना माना सेठ बन गया और मालिक सारा कारोबार उसपर छोड़कर गुमने चला गया।

शुक्रवार व्रत कथा

पति की अनुपस्थिति में पत्नी पर सास का अत्याचार:

इधर उसकी पत्नी को सास ससुर दु:ख देने लगे| सारा घर  का काम करा करे उसे जंगल में लकड़ी लेने  भेजते थे । इस बीच घर के आटे से जो भूसी या छेनछ  निकलता  उसकी रोटी बनाकर रख दी जाती और फूटे नारियल की नारेली में पानी दिया जाता है । एक दिन वह लकड़ी लेने जा रही थी, रास्ते में बहुत सी स्त्रियां संतोषी माता का व्रत करती दिखाई दी।

संतोषी माता का व्रत:

वह वहाँ खड़ी होकर कथा सुनने लगी और पूछा बहिनों तुम किस देवता का व्रत करती हो और उसके करने से क्या फल मिलता है। यदि तुम इस व्रत का विधान मुझे समझा कर कहोगे तो मैं तुम्हारा बड़ा अहसान मानूंगी।
तब उनमें से एक स्त्री बोली: सुनो, यह संतोषी माता का व्रत है। इसके करने से निर्धनता, दरिद्रता का नाश होता है और जो कुछ मन में कामना हो, सब संतोषी माता की कृपा से पूरी होती है। तब उसने इस  व्रत की विधि के बार में पूछा ।

संतोषी माता व्रत विधि:

वह भक्तिनि स्त्री बोली की सवाआने का गुड़ चना लेना, इच्छा हो तो सवा पांच आने का लेना या सवा रुपए का भी अपनी भक्ति के  के अनुसार लाना। बिना परेशानी और श्रद्धा व प्रेम से जितना भी बन पड़े उससे सवाया लेना। प्रत्येक शुक्रवार को निराहार रह कर कथा सुनना, इसके बीच में क्रम टूटे नहीं, लगातार नियम पालन करना होगा , सुनने वाला कोई न मिले तो धी का दीपक जला उसके आगे या जल के पात्र को सामने रख कर कथा कहना। जब कार्य सिद्ध न हो नियम का पालन करना और कार्य सिद्ध हो जाने पर व्रत का उद्यापन करना होगा ।

तीन महीने  में माता फल पूरा करती है। यदि किसी के घर  खोटे भी हों, तो भी माता साल भर में कार्य सिद्ध कर देती  है, फल सिद्ध होने पर उद्यापन करना चाहिए बीच में नहीं करना चाहिए । उद्यापन में अढ़ाई सेर आटे का खाजा तथा इसी परिमाण से खीर तथा चने का साग बनाना चाहिए | आठ लड़कों को भोजन कराना, जहां तक मिलें देवर, जेठ, भाई-बंधु के हों, न मिले तो रिश्तेदारों और पास-पड़ोसियों को बुलाना चाहिए । उन्हें भोजन करा यथा शक्ति दक्षिणा दे माता का नियम पूरा करना चाहिए । उस दिन घर में खटाई न खाना। यह सुन बुढ़िया के लड़के की बहू अपने घर चल दी।

व्रत का प्रण करना और माँ संतोषी का दर्शन देना:

रास्ते में लकड़ी को बेच दिया और उन पैसों से गुड़-चना ले माता के व्रत की तैयारी कर आगे चली और सामने मंदिर देखकर पूछने लगी यह मंदिर किसका है। सब कहने लगे संतोषी माता का मंदिर है, यह सुनकर माता के मंदिर में जाकर चरणों में लोटने लगी।
दीन हो विनती करने लगी  माँ मैं निपट अज्ञानी हूँ, व्रत के कुछ भी नियम नहीं जानती, मैं दु:खी हूँ। हे माता जगत जननी मेरा दु:ख दूर कर मैं तेरी शरण में हूँ।

माता को दया आ गई  एक शुक्रवार बीता कि दूसरे को उसके पति का पत्र  आ गया और तीसरे शुक्रवार को उसका भेजा हुआ पैसा आ पहुंचा। यह देख जेठ-जिठानी मुंह सिकोडऩे लगी ।
लड़के ताने देने लगे  काकी के पास पत्र आने लगे, रुपया आने लगा, अब तो काकी की खातिर बढ़ेगी।
बेचारी सरलता से कहती: भैया कागज आवे रुपया आवे हम सब के लिए अच्छा ही है तो । ऐसा कह कर आंखों में आंसू भरकर संतोषी माता के मंदिर में आ करे  हे  मातेश्वरी के चरणों में गिरकर रोने लगी। माँ मैंने तुमसे पैसा कब माँगा थे ।

मुझे पैसे से क्या काम है। मुझे तो अपने सुहाग से काम है। मैं तो अपने स्वामी के दर्शन माँगती हूँ। तब माता ने प्रसन्न होकर कहा-जा बेटी, तेरा स्वामी आयेगा। यह सुनकर खुशी से बावली होकर घर में जा काम करने लगी। अब संतोषी माँ विचार करने लगी, इस भोली पुत्री को मैंने कह तो दिया कि तेरा पति आयेगा लेकिन कैसे? वह तो उसे याद नहीं करता। santoshi mata ki katha

santoshi mata ki katha

उसे याद दिलाने के लिए  मुझे ही जाना पड़ेगा। इस तरह माता जी उस बुढ़िया के बेटे के पास जा स्वय में प्रकट हो कहने लगी साहूकार का  बेटा, सो रहा है या जागता है।
वह कहने लगा: माता सोता भी नहीं, जागता भी नहीं हूँ कहो क्या आज्ञा है?
माँ कहने लगी: तेरे घर-बार कुछ है या  नहीं।
वह बोला: मेरे पास तो सब कुछ है माँ-बाप है बहू है क्या कमी है। santoshi mata ki katha
माँ बोली: भोले पुत्र तेरी बहू घोर कष्ट उठा रही है, तेरे माँ-बाप उसे परेशानी दे रहे हैं। वह तेरे लिए तरस रही है, तू उससे जाकर मिले
वह बोला: हां माता जी यह तो मालूम है, परंतु जाऊं तो कैसे? विदेश की बात है, लेन-देन का कोई हिसाब नहीं, कोई जाने का रास्ता नहीं आता, कैसे चला जाऊं? माँ कहने लगी- मेरी बात मान, शुभ  नहा धोकर संतोषी माता का नाम ले, घी का दीपक जला दण्डवत कर दुकान पर जाकर बैठ जा ।
देखते-देखते सारा लेन-देन चुक जाएगा, जमा का माल बिक जाएगा, सांझ होते-होते धन का भारी ठेर लग जाएगा। अब बूढ़े की बात मानकर वह नहा धोकर संतोषी माता को दण्डवत धी का दीपक जला दुकान पर जा बैठा। थोड़ी देर में देने वाले रुपया लाने लगे, लेने वाले हिसाब लेने लगे। कोठे में भरे सामान के खरीददार नकद दाम दे सौदा करने लगे। शाम तक धन का भारी ठेर लग गया। मन में माता का नाम ले चमत्कार देख प्रसन्न हो घर ले जाने के वास्ते गहना, कपड़ा सामान खरीदने लगा। यहां काम से निपट तुरंत घर को रवाना हुआ उसने सतोषी माता को बार बार याद किया । santoshi mata ki katha

उधर उसकी पत्नी जंगल से  लकड़ी लेने जाती है, लौटते वक्त माताजी के मंदिर में विश्राम करती और । वह तो उसके प्रतिदिन रुकने का जो स्थान हो गया , धूल उड़ती देख वह माता से पूछती है हे माता! यह धूल कैसे उड़ रही है?
माता कहती हे पुत्री तेरा पति आ रहा है। अब तू ऐसा कर लकड़ियों के तीन बोझ बना ले, एक नदी के किनारे रख और दूसरा मेरे मंदिर पर व तीसरा अपने सिर पर।

तेरे पति को लकड़ियों का गट्ठर देख मोह पैदा होगा, वह यहां रुकेगा, नाश्ता-पानी कर के  माँ से मिलने जाएगा, तब तू लकड़ियों का बोझ उठाकर जाना और चौक में गट्ठर डालकर जोर से आवाज लगाना लो सासूजी, लकडिय़ों का गट्ठर लो, भूसी की रोटी दो, नारियल के खेपड़े में पानी दो, आज मेहमान कौन आया है? माताजी से बहुत अच्छा कहकर वह प्रसन्न मन से लकड़ियों के तीन गट्ठर बनाई। एक नदी के किनारे पर और एक माताजी के मंदिर पर रखा दिया ।

इतने में मुसाफिर आ पहुंचा। सूखी लकड़ी देख उसकी इच्छा उत्पन्न हुई कि हम यही पर विश्राम करें और भोजन बनाकर खा-पीकर गांव जाएं। उसे के बाद वह वहाँ रुके गया और भोजन बनाया और खाया । सबसे प्रेम से मिला। उसी समय सिर पर लकड़ी का गट्ठर लिए वह उतावली सी आती है। लकड़ियों का भारी बोझ आंगन में डालकर जोर से तीन आवाज देती है लो सासूजी, लकड़ियों का गट्ठर लो, भूसी की रोटी दो। आज मेहमान कौन आया है।santoshi mata ki katha

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यह सुनकर उसकी सास बाहर आकर अपने दिए हुए कष्टों को भुलाने हेतु कहती है: बहु ऐसा क्यों कहती है? तेरा मालिक ही तो आया है। आ बैठ, मीठा भात खा, भोजन कर, कपड़े-गहने पहने । उसकी आवाज सुन उसका पति बाहर आता है। अंगूठी देख व्याकुल हो जाता है।santoshi mata ki katha
माँ से पूछता है माँ यह कौन है?
माँ बोली: बेटा यह तेरी पत्नी है। जब से तू गया है यह तब से सारे गांव में भटकती फिरती रहती है। घर का काम-काज कुछ करती नहीं, चार बार खाना खा जाती है।

वह बोला: ठीक है माँ मैंने इसे भी देखा और तुम्हें भी, अब दूसरे घर की चाबी  दो, उसमें रहूँगा।santoshi mata ki katha
माँ बोली: ठीक है, जैसी तेरी मरजी। तब वह दूसरे मकान की तीसरी मंजिल का कमरा खोल सारा सामान जमाया। एक दिन में राजा के महल जैसा ठाट-बाट बन गया। अब क्या था? बहु सुख भोगने लगी। इतने में शुक्रवार आया।

शुक्रवार व्रत के उद्यापन में हुई भूल, किया खटाई का इस्तेमाल:

उसने अपने  पति से कहा की मुझे संतोषी माता के व्रत का उद्यापन करना है।
पति बोला: खुशी से कर लो। वह उद्यापन की तैयारी करने लगी। जिठानी के लड़कों को भोजन के लिए कहने गई। उन्होंने मंजूर किया परन्तु पीछे से जिठानी ने अपने बच्चों को सिखाया, देखो, की  भोजन के समय खटाई माँगना, जिससे उसका उद्यापन पूरा न हो।
लड़के जीमने आए और खीर खाना पेट भर खाया, परंतु बाद में खाते ही कहने लगे की  हमें तो खटाई दो, खीर खाना हमको नहीं भाता, देखकर अरुचि होती है।
वह कहने लगी खटाई किसी को नहीं दी जाएगी। यह तो संतोषी माता का प्रसाद है।
लड़के उठ खड़े हुए, बोले: पैसा लाओ, भोली बहु कुछ जानती नहीं थी, उन्हें पैसे दे दिए।

लड़के उसी समय हठ करके इमली खटाई ले खाने लगे। यह देखकर बहु पर माताजी ने कोप किया। राजा के दूत उसके पति को पकड़ कर ले गए। जेठ जेठानी मन-माने वचन कहने लगे। लूट-लूट कर धन इकट्ठा कर लाया है, अब सब मालूम पड़ जाएगा जब जेल की मार खाएगा। बहु से यह सहन नहीं हुआ ।

माँ संतोषी से माँगी माफी:

रोती हुई माताजी के मंदिर गई, कहने लगी: हे माता! तुमने क्या किया, हंसाकर  भक्तों को रुलाने लगी।
माता बोली: बेटी तूने उद्यापन करके मेरा व्रत भंग किया है।
वह कहने लगी: माता मैंने कुछ अपराध किया है, मैंने तो भूल से लड़कों को पैसे दे दिए थे, मुझे क्षमा करो। मैं फिर तुम्हारा उद्यापन करूंगी।
माँ बोली: अब भूल मत करना।
वह कहती है: की  अब भूल नहीं होगी, अब बताओ  वे कैसे आवेंगे?
माँ बोली जा पुत्री तेरा पति तुझे रास्ते में आता मिलेगा। वह निकली, राह में पति आता मिला।santoshi mata ki katha

वह पूछने लगी  कहां गए थे?
वह कहने लगा: इतना धन जो कमाया है उसका टैक्स राजा ने माँगा था, वह भरने गया था।
वह प्रसन्न हो बोली भला हुआ, अब घर को चलो। कुछ दिन बाद फिर शुक्रवार आया

फिर किया व्रत का उद्यापन:

वह बोली मुझे फिर से माता का उद्यापन करना होगा ।
पति ने कहा  करो। बहु फिर जेठ के लड़कों को भोजन को कहने गई। जेठानी ने एक दो बातें सुनाई और सब लड़कों को सिखाने लगी। तुम सब लोग पहले ही खटाई माँगना।
लड़के भोजन से पहले कहने लगे हमें खीर नहीं खानी, हमारा जी बिगड़ता है, कुछ खटाई खाने को दो।
वह बोली: खटाई किसी को नहीं मिलेगी, आना हो तो आओ, वह ब्राह्मण के लड़के लाकर भोजन कराने लगी, अपनी सकती के अनुसार दक्षिणा दी और दक्षिणा की  जगह एक-एक फल उन्हें दिया। संतोषी माता बहुत प्रसन्न हुई। santoshi mata ki katha

संतोषी माता का फल:

माता की कृपा होते ही नव महीने में उसके चन्द्रमा के समान सुन्दर पुत्र प्राप्त हुआ। पुत्र को पाकर प्रतिदिन माता जी के मंदिर को जाने लगी।
माँ ने सोचा यह रोज आती है, आज क्यों न इसके घर चलूं। यह विचार कर माता ने भयानक रूप बनाया, गुड़-चने से सना मुख, ऊपर सूंड के समान होठ, उस पर मक्खियां भिन-भिन कर रही थी।
देहली पर पैर रखते ही उसकी सास चिल्लाई: देखो रे, कोई चुड़ैल डाकिन चली आ रही है, लड़कों इसे भगाओ, नहीं तो किसी को खा जाएगी। लड़के भगाने लगे, चिल्लाकर खिड़की बंद करने लगे।

बहु रौशनदान में से देख रही थी, प्रसन्नता से पगली बन चिल्लाने लगी आज मेरी माता जी मेरे घर आई है। वह बच्चे को दूध पीने से हटाती है। इतने में सास का क्रोध फट पड़ा।
वह बोली क्या उतावली हुई है? बच्चे को पटक दिया। इतने में माँ के प्रताप से लड़के ही लड़के नजर आने लगे।santoshi mata ki katha
वह बोली माँ मैं जिसका व्रत करती हूँ यह संतोषी माता है।

सबने माता जी के चरण पकड़ लिए और विनती कर कहने लगे हे माता! हम मूर्ख हैं, अज्ञानी हैं, तुम्हारे व्रत की विधि हम नहीं जानते, व्रत भंग कर हमने बड़ा अपराध किया है, जग माता आप हमारा अपराध क्षमा करो। इस प्रकार माता प्रसन्न हुई। बहू को प्रसन्न हो जैसा फल दिया, वैसा माता सबको दे, जो पढ़े उसका मनोरथ पूर्ण हो।
बोलो संतोषी माता की जय। बोलो संतोषी माता की जय। santoshi mata ki katha

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